मूर्खता है। भोगवादियों की तरह नारी को निरास भोग
की वस्तु मानना भी गलत है। नारी, नर से केवल रिझाने या प्रेरणा देने के लिए नहीं बनी है। जीवन यज्ञ में उसका भी अपना हिस्सा है और वह हिस्सा घर तक ही सीमित नहीं, बाहर भी है।
जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी
का भी कर्मक्षेत्र है। नर और नारी, दोनों के जीवनोद्देश्य एक हैं। यह अन्याय है कि पुरुष तो अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनमाने विस्तार का क्षेत्र अधिकृत कर
ले और नारियों के लिए घर का छोटा-सा कोना छोड़ दे।
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