उत्तर :-- जीवन में जब विद्रोह की भावना जगती है तभी व्यक्ति ऊँचाई तक उठ पाता है। हमें मनोवैज्ञानिक विद्रोह की अवस्था में रहना होता है ।
सत्य की खोज केवल वे ही कर सकते हैं जो सतत् विद्रोह की अवस्था में रहते हैं। परम्पराओं को स्वीकार कर लेनेवाला, उनका अनुकरण रहनेवाला विद्रोह नहीं कर सकता। सत्य, परमात्मा अथवा प्रेम को हम तभी
उपलब्ध कर सकते हैं जब हम अविच्छिन्न खोज
करते हैं, सतत् निरीक्षण करते हैं और निरंतर सीखते
हैं।जीवन को विद्रोही और क्रांतिकारी ही सार्थक रूप
से जी पाते हैं।
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