उत्तर :- गाँधीजी ने भितिहरवा, चम्पारण में स्कूल खोले। इन स्कूलों में किसी तरह का नपा-तुला पाठ्यक्रम चालू नहीं किया। वे लीक से हटकर चल रहे थे। वर्तमान शिक्षा पद्धति को वे खौफनाक और हेय मानते थे। छोटे बच्चों के चरित्र और बुद्धि का विकास करने के बजाय यह पद्धति उन्हें बौना बनाती है। अपने प्रयोग में गाँधीजी वर्तमान पद्धति के गुणों को ग्रहण करते हैं और दोषों से बचते हैं।
गाँधीजी का मुख्य उद्देश्य यह था कि बच्चे ऐसे पुरुष
और महिलाओं के सम्पर्क में आएँ जो सुसंस्कृत हो
और चरित्र जिनका निष्कलुष हो । गाँधीजी इसी को शिक्षा मानते थे। अक्षर ज्ञान तो इस उद्देश्य की प्राप्ति
का एक साधन मात्र है। जीविका के लिए जो बच्चे नए साधन सीखना चाहते थे, उनके लिए औद्योगिक शिक्षा की व्यवस्था की जानी थी।
इरादा यह नहीं था कि शिक्षा पा लेने के बाद ये बच्चे अपने वंशगत व्यवसायों को छोड़ दें। जो वे ज्ञान स्कूल
में प्राप्त करेंगे उसका उपयोग खेती और ग्रामीण जीवन को परिष्कृत करने में होगा।
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