उत्तर :-- पराधीनता के कारण नारी अपने अस्तित्व की अधिकारिणी नहीं रही। उसका सारा मूल्य इस बात पर जा ठहरा कि पुरुषों को उसकी कोई आवश्यकता है या नहीं। इसी से नारी की पद-मर्यादा प्रवृत्तिमार्ग के प्रचार 
से उठती और निवृत्तिमार्ग के प्रचार से गिरती रही। 

जो प्रवृत्तिमार्गी हुए, उन्होंने नारी को गले से लगाया, क्योंकि जीवन से वे आनन्द चाहते थे और नारी आनंद की खान थी। किन्तु जो निवृत्ति मार्गी निकले उन्होंने जीवन के साथ नारी को भी अलग ढकेल दिया, क्योंकि नारी उनके किसी काम की चीज नहीं थी। 

निष्कर्षतः--  प्रवृत्तिमार्ग का अर्थ है नारी के साथ 
गृहस्थ जीवन व्यतीत करना और निवृत्ति मार्ग का अर्थ है संन्यासी का जीवन जीना। नारी-विहीन जीवन जीना।