उत्तर :--  'हँसते हुए मेरा अकेलापन' मलयज रचित डायरी-साहित्य है। डायरी लेखक के कर्म की साक्षी है, उसका संघर्ष की प्रवक्ता है। एक कलाकार के लिए यह निहायत जरूरी है कि उसमें 'आग' हो......... और वह खुद 'ठंढा' हो।

प्रस्तुत डायरी साहित्य में 10 मई, 78 की लिखी डायरी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। आदमी यथार्थ को जीता ही नहीं, यथार्थ को रचना भी है। रचा हुआ यथार्थ भोगे हुए यथार्थ से अलग है। भोगा हुआ यथार्थ का एक हिस्सा दूसरों को दे देता है। हर एक का भोगा हुआ यथार्थ दूसरों के दिए हुए हिस्से - हिस्से यथार्थ का एक सामूहिक नाम है।

इसलिए यथार्थ को रचना एक नैतिक कर्म है, क्योंकि
वह एक सामाजिक सत्य की भी सृष्टि करता है।

यथार्थ के इस लेन-देन का नाम ही संसार है। इस संसार से संपृक्ति एक रचनात्मक कर्म है। इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है।

हर आदमी उस संसार को रचता है जिसमें वह जीता है और भोगता है। आदमी के होने की शर्त यह रचा जाता है, भोगा जाता संसार ही है।

रचने और भोगने का रिश्ता एक द्वंद्वात्मक रिश्ता है।
एक के होने से दूसरे का होना है। दोनों की जड़ें एक दूसरे में हैं और वहीं से वे अपना पोषण रस खींचते हैं।

दोनों एक दूसरे को बनाते हैं। दोनों एक दूसरे को 
मिटाते हैं। दोनों एक दूसरे को बनाते-मिटाते हैं। निष्कर्षतः--  डायरी - साहित्य लेखन एक कठिन 
कार्य है। आदमी यथार्थ को जीता ही नहीं, यथार्थ को रचता भी है।