रक्षाबंधन हिंदुओ के प्रसिद्ध त्याहारों में से एक है।  
यह प्रति वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 
को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने-अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधती हैं। इसलिए इसे भाई-बहनों

के प्रेम का त्योहार भी माना जाता है। इसे लोग श्रावणी, राखी, सलूना आदि नामों से भी पुकारते हैं। यह त्योहार वर्षा ऋतु का प्रमुख त्योहार है।

हिंदुओं के सभी त्योहारों का आरंभ प्रायः--  
किसी ऐतिहासिक, धार्मिक अथवा पौराणिक घटना से 
माना जाता है। रक्षा बंधन क त्योहार भी ऐसी ही घटनाओं पर आधारित है। इस दिन बहनें अपने-
अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधकर उनके
 मंगल की कामना करती हैं। वहीं भाई भी अपनी
 बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं।

प्राचीन समय में रक्षाबंधन मुख्य रूप से ब्राह्मणों
का त्योहार था। उस दिन वे उपवास रखते थे और जलाशय में खड़े होकर वैदिक मंत्रों का पाठ करते 
थे। पूजा और तर्पण के

बाद यज्ञ होता था। यज्ञ की समाप्ति पर वे एक
दूसरे के हाथ पर रक्षा-सूत्र बाँधते थे। यह दिन 
पारस्परिक एकता और प्रेम का प्रतीक था। इसी 
दिन बालकों का विद्या-आरंभ संस्कार किया जाता
था। कुछ लोगों का  मत है कि इस दिन भगवान ने
ह्यग्रीव का अवतार धारण कर सामदेव का प्रचार 
किया था। इसलिए इसे ह्यग्रीव जयंती भी कहते हैं।

समय के परिवर्तन के साथ-साथ इस त्योहार को मनाने की विधि में परिवर्तन होता रहा है। आज यह किसी वर्ग विशेष का त्योहार न होकर सभी का त्योहार माना जाता है। ब्राह्मण लोग अपने-अपने यजमानों के यहाँ जाकर उनके हाथ पर रक्षा-सूत्र बाँधते हैं और बदले में दक्षिणा

 प्राप्त करते हैं। इस दिन बहनें भाई के माथे पर तिलक लगाकर उन्हें मिठाई खिलाती हैं और कलाई पर राखी बाँधती हैं। भाई भी राखी के बदले में बहनों को यथा सामर्थ्य धन एवं उपहार भेंट करते हैं। राखी का सूत्र बहन के पवित्र प्रेम का सूचक है।

राखी के कच्चे धागों में पराये को भी अपना
बनाने  का सामर्थ्य है। इस दिन यदि कोई लड़की 
किसी पुरुष  के हाथ पर राखी बाँध देती है तो उस
पुरुष का कर्तव्य हो जाता है कि वह अपनी जान पर

 खेलकर उसकी रक्षा करे। कहा जाता है कि एक बार संकट में फँसी उदयपुर की राजपूत रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर अपना भाई

बनाया था और बादशाह हुमायूँ ने बहन के प्रति अपने फर्ज को पूरा किया था। इस घटना की स्मृति मात्र से
मन पुलकित हो उठता है। ऐसा ही है यह रक्षाबंधन का त्योहार जो भाई-बहन के पवित्र संबंधों को अटूट बनाने वाला और उनमें मेल बढ़ाने वाला है।