उत्तर :-- 'तुमुल कोलाहल कलह में शीर्षक कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। वे छायावादी कवि है।
यह कविता 'कामायनी' के 'निर्वेद' सर्ग से ली गयी है। इड़ा की प्रजा और मनु के बीच युद्ध हुआ। सर्वत्र शांति छा गयी। सर्वत्र शोक या गया। ऐसे में इड़ा ने श्रद्धा को आश्रय दिया। मुच्छित मनु को देख श्रद्धा द्रवित हो उठी।
श्रद्धा और मनु का मधुर मिलन होता है। श्रद्धा
भावनाओं के कोलाहल में शांति की दूतिनी है।
श्रद्धा हृदय का प्रतीक है। इड़ा बुद्धि का प्रतीक है।
मनु मन का प्रतीक है। विचारों के उथल-पुथल में
हृदय की बात श्रेष्ठ है। मनुष्य व्याकुल होकर आराम खोजता है।
पुरुष नारी की शरणस्थली खोजता है।
नारी की गोद में पुरुष की चंचलता शांत
हो जाती है। श्रद्धा मनु को विश्रम और चैन
देती है। वह मलयानिल की हवा जैसी है।
मन बड़ा चंचल है। वह थकता नहीं। हाँ, मन
से जुड़ा शरीर थक जाता है। श्रद्धा जीवन की
घाटियों में जलयुक्त बरसात है। एक-एक बूँद
पानी के लिए सभी तरसते हैं। दुनिया जेठ की
प्रचंड दुपहरी है। श्रद्धा ठंढक देती है।
हमें हृदय की बात माननी चाहिए- 'तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन !
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