इसलिए उसने अपने पूर्वजों को असहिष्णुता की नीति को त्याग कर धार्मिक सहिष्णुता की नीति को अपनाया डा० ईश्वरी प्रसाद (Dr. Ishwari Prasad) के अनुसार अकबर राजनीति के श्रेष्ठ गुणों से पूर्ण था और उसने अपने साम्राज्य को हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों की सद्भावना का आधार प्रदान करने का निश्चय किया
लेनपूल (Lanepool) का कहना है कि हिन्दू सरदारों को अपने साथ मिलाना अकबर के शासन का श्रेष्ठ गुण था। तत्कालीन राजनीतिक दशा ही ऐसी थी कि धर्म प्रभावित शासन तथा पक्षपातपूर्ण व्यवहार के कारण जनता के हृदय में विद्रोह की ज्वाला धधकती रहती थी।
अकबर के सम्बन्ध में लेनपूल ने लिखा है कि “स्वयं को केवल दिल्ली का हो सम्राट घोषित करने से पूर्व अकबर को बड़ाभीषण संघर्ष करना पड़ा था। इसलिए उसने बड़े सुन्दर ढंग से घोषणा की कि भारत भारतीयों के लिए है।
अकबर की राजपूत नीति व उसका क्रियान्वयन :— अकबर ने अव्यवस्थित मुगल साम्राज्य को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए राजपूत नौति के रूप में व्यापक हिन्दू नीति तथा (सुलह-ए-कुल) की नीति को अपनाया तथा उसका क्रियान्वयन निम्नलिखित तीन रूपों में किया
(क) राजनीतिक क्षेत्र:– में राजनीतिक क्षेत्र में अकबर ने राजपूत नीति की नयी व्यवस्था को निम्न प्रकार क्रियान्वित किया था
(1) हिन्दुओं को पदासीन करना:–
अकबर को यह आभास हो गया था कि मुगल साम्राज्य बिना हिन्दुओं के सहयोग के स्थायी नहीं बन सकता इसलिए उसने हिन्दुओं को ही सारे उच्च पद प्रदान किये। उसके हिन्दू पदाधिकारियों में मानसिंह बोरबल एवं टोडरमल आदि मुख्य थे। डा० ईश्वरी प्रसाद के अनुसार अकबर के संरक्षण में योग्य और विद्वान हिन्दू उच्च पदों पर पहुंच गये और हिन्दू मस्तिष्क विकास की अन्तिम सीमा तक जा पहुँचा।
2) गुलाम-प्रथा की समाप्ति:— अकबर ने युद्ध के बन्दियों को गुलाम बनाने की प्रथा को पूर्णतः समाप्त कर दिया था।
(3) योग्यता का महत्व :– अकबर ने योग्यता को आसन का आधार बनाया। उसने प्रत्येक व्यक्ति को उनकी योग्यतानुसार पद देना आरम्भ किया।
(ख) धार्मिक क्षेत्र में :– धार्मिक क्षेत्र में भी अकबर ने हिन्दुओं के प्रति नयी नीति का निर्धारण किया जिसका विवरण इस प्रकार है
(1) सभी धर्मों का आदर करना अकबर:– ने सभी धर्मों को समान स्थान दिया तथा सभी धर्मों के सार को समझकर एक दीन-ए-इलाही नामक धर्म की नींव डाली।
(2) धार्मिक गृहों की सुरक्षा :— अकबर सभी धार्मिक स्थानों का आदर करता था। उसने सभी धर्मों के पूजा गृहों की रक्षा के लिए भी कानून बना दिया था। यह आवश्यकता पड़ने पर पूजा गृहों को दान भी देता था। इस सम्बन्ध में लेनपूल ने लिखा है कि अकबर यथार्थ में धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था और प्रत्येक प्रकार के पूजा गृहों को अच्छा मानता था।
(3) नियमों की स्थापना में स्वतन्त्रता:– अकबर ने पूजा के नियमों की स्थापना में सभी धर्मों के व्यक्तियों को पूर्ण स्वतन्त्रता दे दी थी। वह स्वयं पूजा के नियम हिन्दुओं की इच्छानुसार डी मानता था।
(4) धर्म पालन में स्वतन्त्रता :– अकबर ने सभी व्यक्तियों को कोई सा भी विचार अथवा मत मानने तथा धर्म ग्रहण करने की स्वतन्त्रता दे दी थी। वह धर्म बदलने के लिए किसी के साथ भी जबर्दस्ती नहीं करता था।
(ग) सामाजिक क्षेत्र में सामाजिक क्षेत्र में :– अकबर ने हिन्दुओं के प्रति नयो नीति का निर्धारण इस प्रकार किया
(1) राजपूतों के साथ सम्बन्ध स्थापित करना :- अकबर ने राजपूत राजाओं की कन्याओं वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए थे। अकबर का विवाह अजमेर के शासक बिहारी मल की कन्या से हुआ तथा जहांगीर का विवाह भगवान दास की कन्या से। इस प्रकार जैसलमेर तथा बीकानेर की कन्याओं के साथ भी इनके सम्बन्ध थे।
(2) रहन सहन व पहनावा धारण करना :- हिन्दू जनता का विश्वास जीतने के लिए उसने हिन्दुओं के रहन-सहन व पहनावे को भी धारण किया था। उसने पगड़ी बाँधना, मूँछ रखना, दाढ़ी मुड़वाना तथा तिलक लगाना भी आरम्भ कर दिया था।
(3) कुरीतियों का अन्त :- अकबर ने समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे अग्नि प्रथा, बाल विवाह मद्यपान एवं कन्या वध आदि का अन्त किया तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया।
(4) करों का बोझ कम करना:- हिन्दू जाति पर धर्म के नाम जो कर लगाये जाते थे, अकबर ने उन्हें समाप्त कर दिया। इस व्यवस्थानुसार जजिया के समाप्त हो जाने पर हिन्दुओं ने सुख की सांस ली।
(5) छुआछूत की समाप्ति:- हिन्दु लोग मुसलमानों को तथा मुसलमान हिन्दुओं को अछूत मानते थे, लेकिन अकबर ने हिन्दुओं के साथ कोई भेदभाव नहीं किया।
6) हिन्दु साहित्य का अनुवाद :- अकबर ने प्रमुख हिन्दु साहित्य का अरबी व फारसी में अनुवाद करवाया। अकबर ने सभी धार्मिक सिद्धांतों को महत्ता दी। अकबर के इस कार्य ने हिन्दु मुस्लिम एकता को और भी दृढ़ बना दिया था।
(7) मुस्लिम समाज में एकता स्थापित करना :- अकबर ने मुस्लिम समाज में एकता लाने के लिए फतहपुर सीकरी में एक दबादतखाने का निर्माण कराया तथा अब्दुल लतीफ को अपना गुरु बनाया जो उदारवादी विचारधारा के अनुयायी थे।इस प्रकार अपनी इस नीति से अकबर ने समाज में एकता स्थापित की थी। अकबर के शासनकाल में हिन्दुओं की दशा का वर्णन करते हुए लेनपूल (Lanepool) ने लिखा है कि “मुगल साम्राज्य की उन्नति का अधिकांश श्रेय हिन्दूओं की शासन में नियुक्ति की नीति की है। हिन्दू लोग उस समय मुसलमान आक्रमणकारियों से जो अधिकतर अनपढ़ और स्वार्थी थे, कहीं अधिक कुशल थे।
डा० ईश्वरी प्रसाद (Dr Ishwari Prasad) के मतानुसार अकबर की हिन्दू जाति धर्म के प्रति सहानुभूति और हिन्दू साहित्य का संरक्षण ने हिन्दुओं पर बहुत ही गहरा प्रभाव डाला। वे भूतकाल की दुःखभरी घटनाओं को भूल गये और मुगल सम्राट को भारत के प्रथम राष्ट्रीय सम्राट के रूप में मानने लगे।
राजपूत नीति की समीक्षा:- अकबर की सुलह ए कुल की राजपूत नीति की समीक्षा करते हुए डा० ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है कि “शेरशाह प्रथम मुसलमान शासक था, जिसने अपने शासनकाल का आधार शान्ति प्रजा की सद्भावना को बनाया तथा हिन्दू मुसलमान के भेदभाव का शासन से अन्त किया, जिसने उसकी प्रजा के हृदय को प्रभावित किया तथा साम्राज्य की नींव को दृढ़ किया। यही नहीं अकबर यथार्थ में धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था और प्रत्येक प्रकार की पूजा को अच्छा मानता था।”
अकबर मुगल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था, जिसने एक दीर्घकालीन साम्राज्य की स्थापना की। मुसलमान शासकों में सर्वप्रथम अकबर ने ही राष्ट्रीय एकीकरण ational unification) का प्रयत्न किया था। डा० ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में ” अकबर राजनीति के श्रेष्ठ गुणों से पूर्ण था और उसने अपने साम्राज्य के हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों की सद्भावना का आदान प्रदान करने का निश्चय किया।
अन्त में अकबर की राजपूत नीति का वर्णन करते हुए एडवर्ड तमथा गैरेट ने लिखा है कि वह प्रथम मुसलमान था जिसने बहुत से हिन्दुओं को अपनी और मिलाकर और उनको ऊंचे ऊंचे पदों पर नियुक्त करके एक महान राष्ट्र की स्थापना की। बुद्धिमान सफल शासन प्रबंधकर्ता के उसमें विशेष गुण थे तथा इतिहास के ज्ञातव्य सुल्तानों में सर्वाधिक शक्तिशाली कहलाने का वह अधिकारी था।”
निष्कर्षतः– के० टी० शाह (K. T. Shah) के शब्दों को सत्य माना जा सकता है कि “अकबर मुगलों में सबसे महान था। वह सम्भवतया पिछले एक सहस्र वर्षों के शासकों में शक्तिशाली, मौर्य सम्राटों के युग से अब तक सबसे महान था। सर्वाधिक खोजपूर्ण आलोचनाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि उसके व्यक्तित्व में और उसकी सफलताओं में बहुत कुछ ऐसा है जिसकी भूरि भूरि प्रशंसा कर सकते हैं तथा बहुत ही कम निन्दा करने योग्य है। लेनपूल ने लिखा है कि सम्राट को उदार भावनापूर्ण सहानुभूति के विपक्षता के ऐसे उत्साहजनक वातावरण का प्रसार किया, जिसने विभिन्न मत मतान्तरों और जातियों के निवास स्थान भारत पर अत्यधिक गहरा प्रभाव डालकर उसके सभी विरोधों और कलह का अन्त करते हुए एक संगठित राष्ट्र बना डाना।
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